National Poetry Writing Month, Day 17: एक मज़दूर की कहानी

तपती धूप में निरंतर पसीना बहाते है,
और उसके बाद मेहनत की खुशियों से रोज़ नहाते है।
पूरी दुनिया से परे इनका अलग कारनामा है,
और परिश्रम के पन्नों पर पसीने की स्याही से इन्होंने लिखा अपना खुद का सफरनामा है।
हीरा जो जलकर भी राख ना हो उसे नूर … Continue Reading

National Poetry Writing Month, Day 5: शायद इस दीवाली

शायद इस दीवाली

करूँगा याद मैं वो झिलमिल गलियाँ,
पटाखों का शोर और रौशनी की लड़ियाँ,
रहेगी कसक, लेकिन फर्ज़ से ना मुँह मोड़ पाऊँगा
शायद इस दिवाली मैं घर ना आ पाऊँगा।

ये मीलों फैली वीरान सरहदों की टोलियाँ,
बारूदों का शोर, सायों की आवाज़ें और ये गोलियाँ,
रहो

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